पुनर्विवाह - प्यार कि नई कहानी ( सीजन दूसरा ) 11
तुम्हें भी अपनी जिंदगी जीने का और खुश होने का पूरा हक है , स्वाति ! तुम्हें दुःखी देखना मेरे बस में नहीं है फिर भी मैं आज बेबस हो गया । लेकिन आने वाली जिंदगी में तुम्हें हर खुशी देना वो मेरी जिम्मेदारी होगी । मुझे समझ आ गया है कि , अब मुझे क्या करना है । " रविश निर्णय ले चुका था कि , स्वाति को अपनाने के लिए उसे करना क्या है ।
उधर रविश को स्वाति के पास जाता देखकर ममता जी अपने जगह पर खड़ी हो गई । लेकिन कुछ सोचकर उनके नजरों में आये बिना दोनों की बातें सुनने लगी । रविश को स्वाति कि परवाह करता देख । उन्हें खुशी हुई एक उम्मीद जगी कि शायद यही वो है , जो मेरी बेटी की जिंदगी में खुशियां लेकर आएगा । ममता जी अपने आंखों में आते हुए आंसूओं को पोछते हुए स्वाति के पास जाकर बैठ गई ।
ममता जी स्वाति के सिर पर हाथ रखते हुए बोली - तू ठीक है ?
स्वाति - मैं ठीक हूं मां , आप परेशान मत हो ।
ममता जी - अच्छा ...एक बात पूछूं !
स्वाति बिना सवाल सुने ही कहती हैं - मां वो सपना के भाई है । मुझे यहां देखा तो बात करने आ गये थे और कुछ नहीं !
ममता जी - दिखने में अच्छा है और लड़का समझदार भी लगता है ।
स्वाति अपनी मां के बात का मतलब समझते हुए - तो आप अपनी सहेली है ना अनु आंटी उनकी बेटी के लिए देख लीजिए । पर मुझसे इस बारे में बात मत करिए । कहकर स्वाति वहां से अपने कमरें में चली गई ।
शाम को मेहंदी की रस्म थी । परिवार के सभी सदस्य तैयार होकर हाॅल में आ गए थे । आज सुबह जिस तरह स्वाति को डांट पड़ी थी । सबका यही सोचना था कि , वो इस रस्म में हिस्सा नहीं लेगी ।और यह बहुत हद तक सही भी था । विधवा स्त्री का मेहंदी की रस्म में क्या काम । यही सबकी सोच थी । खुद स्वाति भी यही सोच रही थी ।
स्वाति कमरे में लेटे हुए कुछ सोच रही थी । तभी कमरें स्वधा और समर्पण आये और अपनी मम्मी के अगल बगल लेट गये ।
स्वाति - आप दोनों यहां क्या कर रहे हैं । आप दोनों को तैयार होकर मामा की मेंहदी में नहीं जाना !
स्वधा - नहीं मम्मा ! अगर आप नहीं जायेंगी तो हम भी नहीं जायेंगे । क्यूं भाई !
समर्पण - हां मम्मा , हम आपके साथ ही जायेंगे । नहीं तो नहीं जायेंगे ।
स्वाति - बच्चों मेरी तबियत ठीक नहीं है । इसलिए मैं ना आ रही । आप दोनों जाओ इंज्वॉय करो ।
" आपके बिना वहां हमें अच्छा नहीं लगेगा मम्मा ! "
स्वाति - नानी वहां होंगी ना , आप उनके साथ रहना ठीक है !
" नहीं मम्मा हम आपके साथ ही जायेंगे " दोनों बच्चों ने जिद् की ।
स्वाति - अच्छा आप दोनों जाओ , मम्मा बस दो मिनट में तैयार होकर आती है ।
स्वाति ना चाहते हुए भी अपने बच्चों की खातिर तैयार होकर । मेहंदी की रस्म में हिस्सा लिया ।
स्वाति ने सुबह का ही पीले रंग का सूट पहना हुआ था । जहां सभी एक ही रंग के कपड़े पहने इधर उधर घूम रहे थे । वहीं स्वाति अपने पीले रंग के पटियाला सूट में बहुत ही सुंदर दिख रही थी । एक बार फिर वहां बैठी लड़कियों के चेहरे नाराजगी साफ दिखाई दे रही थी । क्योंकि स्वाति के आते ही , रविश की नजर अपने - आप स्वाति पर ठहर गई । लेकिन स्वाति ने रविश की ओर देखा तक नहीं और एक जगह जाकर बैठ गई ।
स्वाति को देख प्रभा जी बहुत खुश हुई और उसके पास जाकर कहने लगी ।
प्रभा जी - आज सुबह मां जी ने जो कुछ भी कहा उसके लिए माफ कर दो बेटा ! इस घटना के बाद से मैं .. मैं अपने आप से नजरें भी नहीं मिला पा रही हूं । मैंने तुम्हें यहां बुलाया और मेरे ही कारण आज तुम्हें मां जी से इतनी सारी बातें सुननी पड़ी । बेटा मुझे माफ़ कर दो !
स्वाति अपने जगह से उठते हुए - नहीं मासी आप मुझसे माफ़ी मत मांगिए । इसमें आपकी या दादी जी की कोई गलती नहीं है । मैं हाथ जोड़ती हूं फिर ऐसा कुछ मत कहिएगा । कहकर स्वाति प्रभा जी के गले लग गई ।
पास ही बैठे रवि ने भी स्वाति को स्माइली का मुंह बनाकर खुश रहने को कहा ।
इन सबके बीच रविश लगातार स्वाति को देखें जा रहा था । स्वाति को पता था कि रविश उसे ही देख रहा है । इस सबसे उसे बहुत ही असहज महसूस कर रही थी । वो रविश के सामने आने से बच रही थी । आज सुबह उसे रविश को पकड़ना ही उसे असहज करने के लिए काफी था । उस पर एकटक यूं देखना , उसे अच्छा नहीं लग रहा था । स्वाति की छठी इंद्री कह रही थी कि रविश उसे पसंद करने लगा हैं ।( महिलाओं में एक खास बात यह होती है कि वह दूसरों के नजरों को समझ सकती है , उनके देखने के तरीके से ही सामने वाले व्यक्ति के चरित्र को समझ जाती है । ) यही हाल स्वाति का भी था । वो रविश को देखकर समझ रही थी , कि रविश के मन में उसके लिए भावनाये जन्म लें रही है । स्वाति इस सब से बचना चाह रही थी , इसलिए वो उसकी ओर ना देखकर दूसरी तरफ मुंह करके बैठ गई ।
रविश , स्वाति के अनदेखा करने पर थोड़ा विचलित हुआ लेकिन अगले ही पल कुछ सोचकर मुस्कुरा उठा ।
तभी किसी ने कहा - यार ये रुखी - सुखी रस्म करने में मजा नहीं आ रहा । नाच गाना तो बनता है ना !
तो सबसे पहले कौन डांस करेगा । कोई बता सकता है !
उस व्यक्ति ने पूछा !
तभी सपना ने उसे रविश की ओर इशारा किया ।
" आप , स्टेज पर आइये ! उसने रविश को बुलाते हुए कहा ! "
रविश बिना ना नुकुर किये स्टेज पर चला गया ।
वह व्यक्ति - तो आप दुल्हन के भाई है !
रविश - जी , मैं सपना का बड़ा भाई हूं । उसने शालीनता से जवाब दिया ।
वह व्यक्ति - फिर तो आपका डांस करना बनता है । है ना !
रविश उसी शालीनता से - जी बिल्कुल बनता है । मैं डांस जरूर करूंगा पर गाना मेरी पसंद होगा । रविश ने उसके कान में कुछ कहा और वह व्यक्ति वहां से नीचे चला गया ।
तभी गाना शुरू हुआ ....
गाना - देखूं मैं तुझे या देखूं कुदरत के नज़ारे मुश्किलों में है ये दिल मेरा ...
माना तेरी सुरत कि है चांदी सौ टका बिल्लो , मेरे दिल का सोना भी खरा ....
ये तेरी चांद बालियां है होठों पर ये गालियां 2
सोचने का मौका ना दिया ...हाय... मैं तो तेरे पीछे हो लिया ...2
सूट पटियाला तेरा , जूत्ती अमरीत सरिया
दिल कमजोर है मेरा ... रविश , स्वाति को देखते हुए डांस कर रहा था । और यहां स्वाति धरती फट जाय और वो उसमे समा जाये वाली स्थिति में थी ।
क्रमशः
Ashant.
26-Apr-2022 09:57 PM
Bahut khoob
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The traveller
24-Apr-2022 11:22 PM
Very good
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Shivani Sharma
24-Apr-2022 10:53 PM
Intresting
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